ज़ाहिदा हिना और मलाला युसुफजई


वैसे पाकिस्तान के बारे में जानने की मेरी कुछ खासी दिलचस्पी कभी नहीं थी | मेरा कोई मित्र, रिश्तेदार या जान पहचान वाला उस मुल्क में नहीं हैं , ना ही मेरा परिवार विभाजन के पहले कभी पाकिस्तान में रहता था |मेरी जानकारी इस मुल्क के बारे में उतनी ही हैं, जिंतनी इतिहास की किताबो में पड़ी थी या अखबारों और समाचार चेनलो के माध्यम से हासिल हुई हैं | मेरे मन में कभी पाकिस्तान के लिए मुहब्बत नहीं पनपी | हाँ, नफरत जरूर कभी-कभी भड़क जाती हैं, जब हमारे देश में अराजकता और दशहत फ़ैलाने में पाकिस्तान का नाम आता हैं | मेरे लिए पाकिस्तान भी दुनिया के अन्य देशो की ही तरह एक देश था |

पर पिछले कुछ बरसो से ये आलम कुछ-कुछ बदला सा हैं | ऐसा लगता हैं कि वहाँ कोई अपना हमदर्द रहता हैं, जो वहाँ के हालचाल हमें सुनाता है (या यूँ कहें सुनाती हैं ) | वो अपनी बातो में सियासती सुर्खिया भी सुनाती हैं तो दशहत कि दास्ताँ भी बयाँ करती हैं | कभी बुद्धि जीवियो की तरह समझदारी भरी बाते करती हैं तो कभी आम जनता की आवाज़ बन जाती हैं | पर इन सबमे अच्छी और गौर करने वाली बात ये हैं कि वो सियासत की खबरे सुनाकर भी सियासती दाव-पेंचो से दूर हैं | दशहत के रोंगटे खड़े कर देने वाले किस्से सुनाकर भी अमन का ख्वाब देखती हैं | समझदार लोगो की तरह उपदेश देने की बजाय अपनी बात को बारीकी से उन लोगो की कहानिया सुनाते हुए रखती हैं जो अपने हौसलों से समाज के लिए मिसाल बन गए हैं , और जिनकी कोशिशे अक्सर सियासिती और दशहतगर्दो की खबरों में दबकर रह जाती हैं | औरतो और कमजोर लोगो की बाते बताते हुए तो जैसे मेरे दोस्त का हुनर निखरकर सामने आता हैं | हर घटना – दुर्घटना का जायजा ऐसे लिखा जाता हैं, जैसे कोई शायर अपनी ग़ज़ल पड रहा हो | दर्द भरा मिसरा पड़ने पर सुनने वालो की आँखों से आंसू छलक आते हैं तो पुरानी यादो को समेटने पर दिल में कसक सी उठ जाती हैं | नटखट बाते गुदगुदाती हैं तो भावनाओ में लपेटा शेर दिल को छू जाता हैं | और जब जब वो किसी शख्सियत की कहानी सुनाती हैं या तारीफे करती हैं तो पूरे शरीर में हौसले और साहस की कंपकपी होने लगती हैं | ऐसा लगता हे मानो अभी खड़े हो और सल्ल्युट कर ले, उस शख्सियत को भी और उसके बारे में लिखने वाले को भी |

खैर, अब मैं आपका परिचय उस शख्सियत से कराता हूँ जिनकी तारीफ में मैं इतना सब कहे जा रहा हु | वो पाकिस्तान की मशहूर लेखिका हैं – ज़ाहिदा हिना | और उनसे मैं हर रविवार मुखातिब होता हूँ, उनके लेख पाकिस्तान डायरी में, दैनिक भास्कर समाचार पत्र के जरिये | छोटे से लेख में वो एक पूरा उपन्यास लिख देती हैं | उनके लेख में खबरे भी होती हैं, जानकारी भी, कहानिया भी और किस्से भी, पुरानी यादें भी और आने वाले कल के सपने भी | राजनीती, कला, साहित्य, समाजसेवा और आम जनता से जुड़े किसी शख्सियत की आम से लेकर खास बातो का जिक्र बड़ी ही दिलचस्पी से होता हैं | उनकी बातें दिल और दिमाग पर कमाल का असर डालती हैं | और इसी बहाने हम भी चंद उर्दू लफ्जों और जुमलो से वाकिफ हो जाते हैं | अब देखिये ना मेरा जैसा शख्स, जिसने अपनी पूरी तालीम हिंदी और अंग्रेजी में पाई हो, वो उर्दू लफ्जों का इस्तेमाल अपने लेख में कर रहा हैं तो इसका कुछ श्रेय जाहिदा जी को भी जाता हैं |

वैसे आगे कुछ और कहने से पहले आपको ये बात पूरी ईमानदारी से बता दू कि जाहिदा जी के बारे में लिखने का ख्याल मन में कई दफा पहले भी आया, पर हमेशा वो ख्याल बस रेलगाड़ी कि तरह आकर गुज़र गया | पर पिछले रविवार को जाहिदा जी ने एक ऐसे शख्स से हमें रूबरू करवाया कि जिसकी कहानी सुनकर वाकई आँखों में आँसू आ गए और दिल मजबूर हो गया कुछ लिखने के लिए, जाहिदा जी के बारे में भी और उस दुसरे शख्स के बारे में भी | और ये दूसरी नन्ही शख्सियत हैं – स्वात (पाकिस्तान) की मलाला युसुफजई | मलाला की कहानी सुनिए खुद जाहिदा जी की जुबानी –

“2009 में जब स्वात और दूसरे शुमाली इलाक़ों पर आतंकवादियों का कब्ज़ा हो गया तो इन इलाक़ों में रहने वालों को अपने भरे पूरे घर को छोड़कर और अपनी जान बचाकर वहां से जाना पड़ा था। मलाला उस वक़्त 11 बरस की थी और उसे पढ़ने से इश्क़ था, वो घर से ज़्यादा स्कूल को छोड़ते वक़्त जार-जार रोई थी। उसके दिल पर अपनी पढ़ाई छोड़कर जाने का इतना सदमा था कि कुछ दिनों वह गुमसुम रही। फिर उसने ‘गुल मकई’ के नाम से डायरी लिखनी शुरू की, जिसमें वो लिखती थी कि आतंकवाद ने इलाक़े के सब लोगों की ज़िन्दगी किस तरह जहन्नुम बना दी है। लड़कियों के जब स्कूल बंद कर दिए गए थे, कुछ बमों से उड़ा दिए गए थे और ऐलान कर दिया गया था कि कोई लड़की पढ़ती हुई और स्कूल जाती हुई नज़र न आए। मलाला को बचपन से ही पढ़ने का और अपना मुक़द्दर बनाने का शौक़ था। वो अपने दिल की भड़ास अपनी डायरी में निकालती रही। उसके वालिद ने उसकी टेढ़ी मेढ़ी लिखाई वाली डायरी बीबीसी के नुमाइन्दे को दिखाई। उन्होंने इस डायरी का ज़िक्र बीबीसी की उर्दू और पश्तो सर्विस में किया और यूं गुल मकई की डायरी रातोंरात पूरी दुनिया में मशहूर हो गई। गुल मकई के नाम से लिखी जाने वाली इस डायरी की शोहरत को पर लग गए। सहाफी यह जानना चाहते थे कि वो मिलिटेंट्स जिनके नाम से अच्छे अच्छों से चेहरे पीले पड़ जाते हैं, उनके ख़िलाफ आवाज़ उठाने वाली ये कौन लड़की है और किस तरह वो यह बातें लिख रही है। कुछ लोगों का यह गुमान भी गुÊारा था कि शायद अमन, तालीम और सबके लिए खुशहाली की आरजू में किसी कम उम्र लड़की के नाम से यह कोई और कर रहा है। लेकिन, आहिस्ता-आहिस्ता सब ही जान गए कि गुल मकई दरअसल स्वात की मलाला है। ब्लॉग पर उसकी डायरी के जुमले आए और देखते ही देखते वो एक ऐसे इलाक़े मे अमन और बच्चों की तालीम के हक़ का सिंबल बन गई, जहां हर तरफ दहशतगर्द दनदनाते फिरते थे। वह मुल्क में और मुल्क के बाहर कई अंतरराष्ट्रीय तंÊाीमों की तरफ से बुलाई गई। इसे कई अलग-अलग सम्मान दिए गए और जब स्वात के हालात बेहतर हुए और स्वातियों की अपने घरों को वापसी शुरू हुई तो मलाला भी अपने घरवालों के साथ घर को लौट आई और उसने इलाक़े की लड़कियों को हौसला दिया। स्कूल फिर से आबाद हो गए। बच्चियों की चहकार से इलाक़ा गूंज उठा। उन्होंने मलाला को धमकियां दीं, लेकिन जब वह अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटी तो उसे और उसकी साथी लड़कियों को ख़ून में नहला दिया गया। 

मलाला की स्कूल वैन को रोककर जिस तरह दिन दहाड़े उस पर और उसकी साथी लड़कियों पर गोलियां बरसाईं गईं, इसने सारे पाकिस्तान को हिला कर रख दिया है। हर शख़्स को अंदाजा हो गया है कि वो दूरदराज इलाक़ों में लगी हुई दहशतगर्दी और शिद्दतपसंदी की आग अब हमारे घरों तक आन पहुंची है। मलाला का और उस जैसी लड़कियों का क़ुसूर सिर्फ इतना है कि वो पढ़ना चाहती हैं, डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट बनना चाहती हैं। “

(पूरा लेख पढ़ने के लिए क्लिक करे  – http://www.bhaskar.com/article/MAG-article-of-zahida-hina-3948809-NOR.html )

नवरात्री के सातवे दिन मेने मलाला के बारे में पड़ा और मुझे यकीं हो गया कि देविया केवल हिंदुस्तान में ही नहीं बसती, बल्कि पाकिस्तान में भी रहती हैं | और वो तो हर उस मुल्क में रहती हैं जहाँ राक्षसों का आतंक हैं | बस फर्क इतना हैं कि ये देविया इंसानी मजबूरियों से घिरी हैं , कमजोर हैं और कुछ कुछ बेबस भी हैं | और राक्षस तो और भी ज्यादा खूंखार और हैवान बन गए हैं | पर इस सब से इन देवियों को कोई फर्क नहीं पड़ता , उनके हौसले कभी इन राक्षसों के सामने नहीं हारेंगे | हारेंगी तो मेरी और आपकी खामोशिया जो बंद कमरों में सिर्फ कलम घिसने और आँसू बहाने के अलावा कुछ नहीं करती | मलाला, मैं भी तुम्हारे लिए कुछ खास नहीं कर सकता, सिर्फ इस लेख के जरिये तुम्हारी कहानी अपने पाठको को सुनाने के और तहे-दिल से तुम्हारे लिए प्रार्थना करने के | तुम शीघ्र पूर्ण स्वस्थ हो जाओ और फिर से जुट जाओ अपने ख्वाब को अंजाम देने में | हमारी दुनिया को तुम्हारे जैसे लोगो की बहूत जरूरत हैं |

जाहिदा जी , आपका तहे-दिल से शुक्रिया, हमें मलाला और मलाला जैसे अनगिनत लोगो की संघर्ष और साहस की कहानिया सुनाने का | वरना हम (और खासकर मैं ) कभी ये जान ही नहीं पाते कि सरहद के उस पार भी इतने पाक और खूबसूरत लोग रहते हैं |

3 responses to “ज़ाहिदा हिना और मलाला युसुफजई”

  1. Touching Post! Well compiled.
    I m also a fan of Jahida Ji. Its coz of her posts every sunday tht we get to knw tht beyond the borders and nationality, every human is very much like us, with an aspiration of a peaceful and prosperous life with family and loved ones. And its really true..
    सरहद के उस पार भी इतने पाक और खूबसूरत लोग रहते हैं |
    Applause for enlightening on this

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    • Yes Ankita…there are only news about war, politics and terrorism in TV and news papers but Zahida Ji shows different face of her country. In every article she post touching and inspiring stories of people like Malala.

      Thanks for your attention and views on the article.

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  2. I am also a fan of zahida Heena, read her posts every sunday. Hats off to the lady and her courage. Inspite of the way women, who dare to speak out in pakistan are treated, she make her pen her weapon and tries to tear down the shackles. She is gutsy, honest and writes very well! Sometimes I read her column and thank God, I was not born on the other side of the broder.

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